राजस्थान हस्तकला से संबंधित प्रतियोगिता परीक्षा में पुछे जाने सभी महत्वपूर्ण टोपीक धीरे गए हैं
मसुरीया की साड़ी
* कोटा के पास केथुन गांव के बुनकरों द्वारा चोकोर बुनाई से बनाई जाने वाली साड़ी को अनेक रंगों से बुना जाता है
* असली कोटा डोरिया साड़ी की पहचान वर्गों की संख्या से होती है यदि साड़ी की वर्गों की संख्या 300 हैं तो उसे असली कोटा डोरिया की साड़ी माना जाता है
* 1761 में कोटा के प्रधानमंत्री झाला झालिम सिंह ने मैसूर के बुनकर मोहम्मद मसूरिया को कोटा बुलाया और यहां हथकरघा उद्योग की स्थापना कर साड़ियां बनाना शुरू किया और उसी के नाम पर मसूरिया साड़ी हो गया।
गलीचे और दरिया
* जयपुर के गलीचे निर्माण के लिए प्रसिद्ध है टॉक ओनली नमदों के लिए प्रसिद्ध है
* नागौर का टांकला गांव दरियों के लिए पसिद्ध है
* दोसाका लवण गांव भी दरिया के लिए प्रसिद्ध है
* जयपुर और टोंक का गलीचा उद्योग प्रसिद्ध हैं
ब्लू पॉटरी
* जयपुर में ब्लू पॉटरी निर्माण की शुरुआत का श्री महाराजा राम सिंह को है
* कृपाल सिंह शेखावत ने इस कला को देश-विदेश में पहचान दिलाई
* ब्लू पॉटरी प्रारंभ करने काश रे मानसिंह प्रथम को है जबकि सवाइराम सिंह के समय इस कला का विकास हुआ
* अलवर की डबल कट वर्क की बोतल को कागजी कहा जाता है
* बीकानेर की पोटरी में लाख के रंगों का प्रयोग होता है
थेवा कला
* थेवा कला पर कांच का सोने का सूक्ष्म चित्रकान है इसके लिए रंगीन बेल्जियम कांच का प्रयोग किया जाता है
* थेवा कला विश्व में केवल प्रतापगढ़ तक ही सीमित है
दाबू प्रिंट
* चित्तौड़गढ़ जिले का आकोला गांव ' दाबू प्रिंट ' के लिए प्रसिद्ध हैं
* वार्तिक- कपड़े पर मोम की परत चढ़ाकर चित्र बनाने की कला को कहते हैं
रंगाई-छपाई
* सांगानेरी प्रींट को विदेशों में लोकप्रिय बनाने का श्रेय 'मुन्नालाल गोयल' को है।
* सांगानेरी प्रींट में आंगन सफेद होता है
* बगरु प्रींट का आंगन सफेद होता है
* बाड़मेर अजरक प्रिंट के लिए पसिद्ध है
उस्ताकला
* ऊंट की खाल पर मीना परी और मूनवत कार्य आपका नाम से जाना जाता है
* इस कला का विकास बीकानेर में ' हिस्समुधन शाह ' ने कीमा
मीनाकारी
* जयपुर में मीनाकारी की कला ' महाराजा मानसिंह प्रथम ' लाहोर से लाये।
* चांदी के खिलोने व आभुषणों पर मीनाकारी की जाती है
* नाथद्वारा ' चांदी की मीनाकारी के लिए प्रसिद्ध है।
* कोटा के रेतवाली क्षेत्र में कांच पर विभिन्न रंगों से मीनाकारी का काम किया जाता है
पीतल पर मीनाकारी
* पीतल की घिसाई - पोलिस के लिए ' जयपुर व अलवर ' प्रसिद्ध है
* जोधपुर में पानी को ठंडा रखने के लिए ' बादल ' बर्तन उपयोग किया जाता है
* कागज जेसे पतले पत्थर पर मीनाकारी के लिए बीकानेर प्रसीध्द है
लाख कि कला
* लाख की चुडीया 'करौली' जिले के प्रसिद्ध है
* लाख के खिलोने ' जयपुर व उदयपुर ' के प्रसिद्ध है।
हाथी दांत की कला
* हाथी दांत के खिलोने ' जयपुर, उदयपुर, मेड़ता, भरतपुर, पाली ' के प्रसिद्ध है
* हाथी दांत की लाल-पीली चुडीया ' जोधपुर की प्रसिद्ध है।
टेराकोटा कला
* आग में पकाकर अलग-अलग तरह के बर्तन बनाने की कला को ' टेराकोटा कला ' कहा जाता है।
* टेराकोटा की मुर्तियां ' मलाला ( राजसमंद ) की प्रसिद्ध है।
* टेराकोटा की खिलोने, गमले, पक्षी आदि नागोर जिले के प्रसिद्ध है
पत्थर की मुर्तियां
* पत्थर की मुर्तियां 'बासवाडा' की प्रसिद्ध है
* पत्थर के खिलोने ' गालियाकोट ( डुंगरपुर ) का प्रसिद्ध है।
संगमरमर की मुर्तियां
* संगमरमर की मुर्तियां ' जयपुर ' जिले की प्रसिद्ध है
* संगमरमर की पचिकादरी ' भीलवाड़ा ' की प्रसिद्ध है
फतहगिरी
* फौलादी की वस्तुओं पर सोने के पतले तारों की जड़ाई को फतहगिरी कहलाती हैं।
* यह दशमिक से पंजाब लाई गई और पंजाब से मानसिंह प्रथम इसे जयपुर लाये।
* जयपुर व अलवर की कोफतहगिरी प्रसीध्द हैं।
तहनिशा
* इस काम में फौलादी की वस्तुओं पर डिजाइन को गहरा खोदकर उसमें पतला तार भर दिया जाता है
* सोनी आपके चरणों में कीमती पत्थरों की कल को कुंदन कहलाती है
तारकशी
* नाथद्वारा में चांदी के बारीक तारों से विभिन्न आभुषणों एवं कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती हैं यह कला तारकशी कहलाती है।
मिरर वर्क
* बाड़मेर में कपड़े पर विशेष के छोटे-छोटे टुकड़े को हिलने का काम किया जाता है यह मिरर वर्क कहलाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु
* कठपुतली का कार्य उदयपुर में किया जाता है
* बीकानेर का नापासर उनकी लोई के लिए प्रसिद्ध है
* भीलवाड़ा में काशी के बर्तन में ब्यावर में सुंघनी की नसवार बनती है
* पानी के बड़े संग्रह कक्ष को झालरा कहते हैं
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